65. चंदू के चाचा, चांद पर!

आज फिर से प्रस्तुत है, एक और पुराना ब्लॉग-

आज भारत के एक महान कैरेक्टर के बारे में बात कर रहा हूँ, जिन्हें अपनी तारीफ एकदम पसंद नहीं है, लेकिन उनमें गुण इतने हैं कि मेरा मन हो रहा है कि आज उनके बारे में बात कर ही लें।

आपने यह दृष्टांत तो सुना ही होगा- ‘चंदू के चाचा ने, चंदू की चाची को, चांदनी चौक में, चांदी की चम्मच से, चटनी चटाई।‘ दरअसल मैं इन्हीं सज्जन के बारे में बात कर रहा हूँ, जो नहीं चाहते कि उनकी उपलब्धियों को, उनके अपने नाम से जोड़कर जाना जाए। वैसे भी जनता में उनकी नेगेटिव उपलब्धियों की चर्चा ज्यादा होती है। उनको अपने उड़न खटोले पर उड़कर कभी दिल्ली, कभी पटना और कभी रांची की अदालतों में हाजिरी लगानी होती है।

ये मैंने कुछ शहरों का ज़िक्र ऐसे ही कर दिया, इसके कारण अगर आप इस वृतांत को किसी व्यक्ति विशेष से जोड़ लेते हैं, तो ये आपकी श्रद्धा है, मैं ऐसा कुछ नहीं कह रहा हूँ।

यहाँ, यह भी बता दूं कि नाम होने पर लोग जमकर बदनामी देते हैं, और यह बदनामी केवल इनको ही नहीं, इनकी पत्नी, बेटा, बेटी, दामाद- सभी को प्रसाद के रूप में मिली है। इसलिए चाचाजी चाहते हैं कि उनकी सकारात्मक उपलब्धियों का ज़िक्र करने के लिए, उनको उनके अपने भतीजे चंदू के नाम से जोड़कर प्रचारित किया जाए, क्योंकि उस गरीब के साथ कोई नकारात्मक तमगा नहीं जुड़ पाया है।

अब यह भी बता दूं कि चाची को ‘चांदी की चम्मच’ संबंधी वृतांत पर शुरू में गंभीर आपत्ति थी, वे बोलीं कि ‘चम्मच का तो ज़िक्र कर दिया जी, लेकिन कटोरी तो सोने की थी, उसका नाम नहीं लिया, और हम तो रबड़ी खा रहे थे जी, ई ससुरी चटनी कहाँ से आ गई!’ इस पर चाचा ने उनको झिड़क दिया- ‘कुछ पोएटिक फ्रीडम भी होता है जी, और फिर हम क्या-क्या खाते हैं, सब कुछ जनता को बताएंगे, तब क्या होगा जी!’

अब आपके दिमाग में कोई कैरेक्टर आ रहा है तो मैं कुछ नहीं कर सकता, मैं तो चमत्कारी ‘चंदू के चाचा’ का ज़िक्र कर रहा हूँ, जिनके चमत्कार की जानकारी हाल ही में अमेरिकी मीडिया को मिली, हिंदुस्तान में तो बहुत से लोग, बहुत पहले से जानते हैं।

असल में हाल ही में ‘नील आर्मस्ट्रॉन्ग’ द्वारा अपने मोबाइल में लिए गए कुछ चित्रों को खंगाला गया, जो उन्होंने तब लिए था जब वो चांद पर गए थे।

अब इस रहस्य पर से पर्दा उठाने से पहले आपको बता दें कि चंदू के चाचा के पास बहुत से उड़न खटोले हैं। जैसे जब वे अदालत में हाजिरी के लिए जाते हैं, तब भी वे खटोले पर ही जाते हैं और अपने गंतव्य स्थान से कुछ दूरी पर अपना खटोला, किसी पेड़ पर टांग देते हैं, या कहिए कि ‘पार्क’ कर देते हैं।

अब आपको ज्यादा अंधेरे में नहीं रखूंगा, इतना बता दूं कि चंदू के चाचा ने अपने खटोलों पर कितनी दूर की यात्राएं की हैं, इसका अंदाज आप नहीं लगा पाएंगे। जब कभी उनका मन होता है, थकान ज्यादा हो जाती है और यहाँ पर चमचे चैन नहीं लेने देते, तब वे अपने खटोले पर लेटते हैं और किसी अन्य ग्रह पर जाकर अपनी नींद पूरी कर लेते हैं। वैसे उनको वहाँ जाने के लिए खटोले की ज़रूरत नहीं होती, नींद लेने के लिए उसको साथ ले जाना पड़ता है।

ऐसा ही एक बार हुआ, उनका मन हुआ और वे अपने खटोले पर उड़कर चांद पर पहुंच गए, वहाँ एक-दो दिन सोते रहे, अचानक उनके मोबाइल पर रिमाइंडर की घंटी बजी, रांची के कोर्ट में उनकी तारीख थी, टाइम एकदम नहीं बचा था, वे तुरंत वहाँ से कूदे और सीधे कोर्ट में लैंड किए। जल्दी में वे खटोला साथ ले जाना भूल गए और पहली बार कचहरी तक बनियान में पहुंचे, फिर वहीं उनके किसी चेले ने उनको अपना कुर्ता पहनने के लिए दिया।

अब इत्तफाक़ की बात है कि जब चंदू के चाचा, चांद पर अपना खटोला छोड़कर आ गए थे, उसी समय नील आर्मस्ट्रॉन्ग वहाँ पहुंचा, जिसके बारे में न जाने क्या-क्या कहानी बनाई गईं कि इंसान पहली बार चांद पर पहुंचा है।

खैर नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने जो तस्वीरें वहाँ खींची, उनमें चंदू के चाचा के खटोले की तस्वीर भी थी। धरती पर वापस पहुंचने पर जब उन्होंने वह तस्वीर दिखाई तब उनके एक अधिकारी ने चंदू के चाचा का खटोला पहचान लिया और उनसे कहा कि इस फोटो को नष्ट कर दें, वरना ये दावा झूठ साबित हो जाएगा कि वे चांद पर पहुंचने वाले पहले व्यक्ति हैं।

किस्सा इतना ही है कि खटोले के चित्र नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने अपने पर्सनल कंप्यूटर में सेव कर लिए थे, जो हाल ही में अमेरिकी पत्रकारों के हाथ लग गए और अब फिर से यह बात वहाँ दबाने की कोशिश की जा रही है कि चांद पर पहुंचने वाले पहले व्यक्ति असल में चंदू के चाचा थे।

इस प्रसंग के सभी पात्र काल्पनिक हैं, कृपया इन्हें किसी जीवित व्यक्ति से जोड़ने की हिमाकत न करें।

नमस्कार।


4 responses to “65. चंदू के चाचा, चांद पर!”

  1. Nice post

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    1. Thanks.

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  2. Aapka every post read krta hoo.
    Dil ko sukoon mayassar hota hai.
    Ik line aapke andaaz me
    वो हर बात इतनी सुलझाकर करती है
    बात गुस्से वाली भी मुस्कुरा कर करती है

    वैसे तो वो मुझसे खूब बातें करती है
    कभी खुल के करती है,कभी शरमा के करती है.

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    1. Thanks dear
      Very nice lines.

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