206. मैं वो परवाना हूँ, पत्थर को मोम कर दूं!

Three Day Quote Challenge – Day 3

प्रेम विस्तार है, स्वार्थ संकुचन है, इसलिए प्रेम जीवन का सिद्धांत है। वह जो प्रेम करता है जीता है, वह जो स्वार्थी है मर रहा है। इसलिए प्रेम के लिए प्रेम करो, क्योंकि जीने का यही एक मात्र सिद्धांत है, वैसे ही जैसे कि तुम जीने के लिए सांस लेते हो- स्वामी विवेकानंद।

थ्री डे चैलेंज के अंतर्गत ब्लॉग पोस्ट लिखने का आज तीसरा और अंतिम दिन है। शुरू में कुछ बातें दोहराऊंगा-

  1. मुझे साथी ब्लॉगर अनामिका जी ने Three Day Quote Challenge के लिए नामित किया है, मैं अनामिका जी का आभारी हूँ और यह चुनौती स्वीकार करता हूँ। अनामिका जी बहुत सुंदर ब्लॉग लिखती हैं, जिनको https://anamikaisblogging.wordpress.com पर देखा जा सकता है। मैं चाहूंगा कि मेरे साथ जुड़े लोग, अनामिका जी के ब्लॉग्स का भी आनंद लें।

Three Day Quote Challenge के अंतर्गत मुझे तीन दिन तक, प्रतिदिन एक उक्ति/उद्धरण प्रस्तुत करने हैं और यह बताना है कि मुझे वह उद्धरण क्यों पसंद है। आज मेरे इस चुनौती पर अमल करने का तीसरा दिन है।

  1. मेरा आज का उद्धरण जैसा कि मैंने ऊपर बताया, इस प्रकार है- प्रेम विस्तार है, स्वार्थ संकुचन है, इसलिए प्रेम जीवन का सिद्धांत है। वह जो प्रेम करता है जीता है, वह जो स्वार्थी है मर रहा है। इसलिए प्रेम के लिए प्रेम करो, क्योंकि जीने का यही एक मात्र सिद्धांत है, वैसे ही जैसे कि तुम जीने के लिए सांस लेते हो- स्वामी विवेकानंद।

  2. यह विचार भी स्वामी विवेकानंद जी ने शिकागो में ‘विश्व धर्म सम्मेलन’ को संबोधित करते हुए व्यक्त किए थे। असल में पिछला उद्धरण भी इससे जुड़ जाता है, क्योंकि हम लोगों से प्रेम वास्तव में तभी कर पाएंगे जब हमारी सोच ऐसी होगी। यदि हम अपने मन में दूसरों की बुराइयों को भरे रहेंगे तो हम उनसे प्रेम नहीं कर पाएंगे।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है- प्रभु व्यापक सर्वत्र समाना, अथवा जड़, चेतन और जीव जे, सकल राममय जान’। जब सभी में ईश्वर का निवास है, तो मैं कौन होता हूँ किसी से नफरत करने वाला।

यह विश्वास रखिए कि यदि कोई बुरा करता है तो उसको देखना वाला ईश्वर है। आपका धर्म है सबसे प्रेम करना। लेकिन इसके लिए आस्था बहुत जरूरी है। आपके मन में आस्था नहीं है, आप ईश्वरीय सत्ता को नहीं मानते हैं, या ढुलमुल आस्तिक हैं, तो आप सब कुछ अपने आप ही सुधारना चाहेंगे। तब आप शायद सबको प्रेम नहीं कर पाएंगे।

मेरे सामने बहुत से उद्धरण आए, विंस्टन चर्चिल के और अन्य लोगों के जो पढ़ने में छोटे और सरल लगते हैं, अपनाने में सरल लगते हैं, लेकिन ये उद्धरण या उपदेश ऐसा है, जिसको अपनाने के लिए मन की सरलता जरूरी है और मेरा ऐसा मानना है कि हम अगर इसको मन से अपनाएंगे तो फिर जीवन बहुत सुगम हो जाएगा।

एक पंक्ति देवानंद जी पर फिल्माए गए गाने की याद आ रही है-

नफरत करने वालों के सीने में प्यार भर दूं,
मैं वो परवाना हूँ, पत्थर को मोम कर दूं।

कुछ गीत पंक्ति राज कपूर जी से जुड़ी भी-

तू अगर चाहे तो दुनिया को नचा दे ज़ालिम,
चाल दी है तुझे मालिक ने क़यामत दी है,
मैं अगर चाहूँ तो पत्थर को बना दूं पानी,
उसी मालिक ने मुझे भी तो मुहब्बत दी है।

आज का विचार यही कि हम हर व्यक्ति से प्रेम करें, वह हमारा दोस्त हो या खुद को हमारा दुश्मन मानता हो। यह प्रेम ही है जो इस दुनिया को कायम रखे हुए है।

‘अपनी पसंद का उद्धरण देने के अलावा मुझे प्रतिदिन अपने कुछ साथी ब्लॉगर्स को भी यह चुनौती स्वीकार करने के लिए नामित करना है। मैं यह मानता हूँ कि चुनौती स्वयं स्वीकार की जाए तो बेहतर है। इसलिए मैं अनुरोध करना चाहूंगा कि मेरे जो भी साथी इस चुनौती को स्वीकार करना चाहें, वे इसकी सूचना देते हुए चुनौती के अनुसार लगातार अपने तीन ब्लॉग, अपने प्रिय क्वोट/उद्धरण प्रस्तुत करते हुए और यह बताते हुए प्रस्तुत करें कि ये उद्धरण उनको क्यों प्रिय हैं।

मेरा आज का ब्लॉग यहीं संपन्न होता है, और इस प्रकार थ्री डे चैलेंज में मेरी भागीदारी भी। कोई साथी यदि इसमें आगे भाग लेना चाहें तो उनका स्वागत है।

नमस्कार।

2 responses to “206. मैं वो परवाना हूँ, पत्थर को मोम कर दूं!”

  1. आपके इस ब्लॉग को पढ़ने के बाद बहुत कुछ समझ आ गया  ।।। 

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