217. ईटिंग ऑउट इन लंदन!

 

आज लंदन में कुछ और देखते हैं। इंसान जहाँ भी जाए, कुछ काम जो वो हर जगह करता है उनमें से एक है भोजन करना। और घर का भोजन कब तक चलता रहेगा भाई, कुछ तो बज़ार में भी चट्टन-वट्टन होना चाहिए। और हाँ महिलाओं के लिए एक गतिविधि, जो हर जगह होनी ही चाहिए, वो है शॉपिंग! तो आज इनकी ही बात करते हैं। इसमें शॉपिंग वाली गतिविधि की मुख्य पात्र मेरी श्रीमती जी हैं और बाज़ार के खाने के विशेषज्ञ मेरे बेटा-बहू हैं। वैसे लंदन में क्या कहाँ मिलेगा, ये भी तो बेटा-बहू ही जानते हैं। हम तो कुछ दिन नहीं, पूरे एक महीने के मेहमान थे, जो अब पूरा होने को है!

हाँ तो जी पहली घटना तो ये उस दिन की है जब हम ‘लंदन आई’ और ‘टॉवर ब्रिज’ देखने गए थे, इन दोनों स्थानों पर घूमने के बाद थक गए थे और यह विचार आय कि अब कहीं खाना खाएं और फिर वापस घर जाकर आराम करेंगे। तो अब मौका था मेरे बेटे की होटलों, रेस्तराओं संबंधी विशेषज्ञता के काम मे आने का! मेरे बेटे आशीष ने शायद जितनी फोटो इंसानों की खींची होंगी, लगभग उतनी ही होटलों में खाना खाने से पहले वहाँ की डिशेज़ की खींची होंगी।
अब हम लंदन के किस इलाके में हैं और कहाँ जा रहे हैं, ये सब याद रखना तो मेरे लिए बहुत मुश्किल है, हम टॉवर ब्रिज के पास से बस पकड़कर, वहाँ से काफी दूर गए, उसके बाद बस से उतरकर कुछ देर तक खोजना भी पड़ा उस रेस्टोरेंट को जहाँ जाना था, क्योंकि उसकी ठीक लोकेशन मेरे बेटा-बहू को याद नहीं थी।

हाँ तो ये था- ‘पंजाब’ रेस्टोरेंट, जिसे इसके मालिक ने भारत की आज़ादी से एक वर्ष पहले 1946 में स्थापित किया था और आज यह रेस्टोरेंट बड़ी शान से उस इलाके में भारतीय भोजन की पहचान बनकर चल रहा है, बार भी वहाँ है और ग्राहक भी भारतीय मूल के और अंग्रेज, सभी खूब आते हैं। कर्मचारियों में मैंने देखा कि एक-दो को छोड़कर सभी भारतीय या एशियन हैं, क्योंकि देखकर यह पहचान मुश्किल होती है कि भारतीय है अथवा पाकिस्तानी या बंग्लादेशी! खैर उस दिन लंदन में रहकर, पंजाब रेस्टोरेंट का खाना बहुत अच्छा लगा।

उसके बाद एक दिन शॉपिंग के लिए निर्धारित था, जिसमें मेरी और मेरे बेटे की भूमिका तो मेहमान कलाकार की थी, यह तो मेरी पत्नी और बहू की विशेषज्ञता का क्षेत्र है। इस काम के लिए हम एशियाई लोगों की घनी आबादी वाले ‘ईस्ट हैम’ इलाके में गए, यहाँ जिन भी दुकानों से जो भी शॉपिंग हुई हो, मैं ज़िक्र करूंगा यहाँ पर भी खाने का, जो हमने ‘टेस्ट ऑफ इंडिया’ नामक वेजीटेरियन  रेस्टोरेंट में किया, काफी बड़े इलाके में फैला रेस्टोरेंट है ये और पूरा भरा हुआ था। यहाँ भी लगभग सभी कर्मचारी भारतीय दिखाई दे रहे थे।

हमने दक्षिण भारतीय दिश ऑर्डर किए। गुड़गांव अथवा गोआ के अपने अनुभव के आधार पर हम मान रहे थे कि एक व्यक्ति के लिए एक डोसा अथवा उत्तपम काफी नहीं रहेगा, लेकिन जब ऑर्डर ‘सर्व’ हुआ तब हमने देखा कि डोसे आदि का आकार काफी बड़ा था और एक व्यक्ति के लिए उसको निपटाना मुश्किल हो गया।

अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि जो भी व्यक्ति, जिस भी क्षेत्र में मेहनत और ईमानदारी के साथ काम कर रहा है, वो अपनी पहचान बनाता है और ये लोग भी एक तरह से यहाँ भारत की पहचान हैं और भारतीयों को रोज़गार भी दे रहे हैं। मैं इन दो रेस्टोरेंट्स में ही गया वैसे यहाँ और भी बहुत होंगे। मेरी यही कामना है कि ये भारतीय भोजन के बहाने दुनिया को भारत की पहचान कराते रहें।

(बीच में ब्लॉग का 217 नंबर छूट गया था, इसलिए आज ये नंबर दे दिया)
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार।