251. लिखित शब्द की अंतिम सांसें!

आज # IndiBlogger पर # IndiSpire के अंतर्गत उठाए गए विषय पर अपने विचार रख रहा हूँ, जिसमें यह चिंता व्यक्त की गई है कि ‘क्या वीडियो ब्लॉग, लिखित ब्लॉग्स को समाप्त कर देंगे’ अथवा ‘क्या टेलीविज़न ने प्रिंट मीडिया पत्रकारिता’ अथवा अखबार-पत्रिकाओं को समाप्त कर दिया है?’

कुछ बातें, कुछ प्रक्रियाएं सनातन हैं और हमेशा रहने वाली हैं! जैसे कि परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है और दूसरा यह कि परिवर्तन से डरना, मनुष्य का स्वभाव है! परिवर्तन जब होना ही है, तो वह जैसा भी हो, उसको स्वीकार तो करना ही होगा! हाँ परिचर्चा के लिए, इस विषय पर बात कर लेते हैं कि क्या वीडियो ब्लॉगिंग से लिखित ब्लॉग समाप्त हो जाएंगे, आदि-आदि।

वैसे सभी धर्मों में इस तरह की बात की गई है, जैसे बाइबिल में कहा गया है कि ‘सबसे पहले शब्द था और शब्द ही ईश्वर था’, हिंदू धर्म में भी ‘शब्दब्रह्म’ और ‘नादब्रह्म’ की बात कही गई है। शंकर के डमरू के स्वर से भी बहुत कुछ सृजन होने की बात कही जाती है।

संत कबीर जी की पंक्तियां याद आ रही हैं-

सुनता है गुरू ज्ञानी,
गगन से आवाज हो रही है-
झीनी, झीनी, झीनी

मुझे लगता है कि प्रिंट मीडिया अथवा लिखित ब्लॉग समाप्त हो जाएं, ऐसा कोई खतरा तो नहीं है, लेकिन यह कोई चिंता की बात भी नहीं है, परिवर्तन हमेशा अच्छे के लिए ही होता है और समय के अनुसार जो कुछ, जितनी मात्रा में संगत होता है, वह उतना ही रह जाता है।

जो भी माध्यम हो, उसमें शब्द तो रहेगा ही, भाषा भी रहेगी! अब समय के अनुसार यदि माध्यम बदलने की आवश्यकता पड़ती है तो ऐसा करने में क्या बुराई है!

वैसे वीडियो ब्लॉग में भी बोले गए शब्द होते हैं और दो-चार मिनट के वीडियो को छोड़ दें तो उसमें भी लिखित शब्द की, स्क्रिप्ट की आवश्यकता तो होगी ही।

मैं तो यही मानता हूँ कि हर समय में, हर काल में जो कुछ, जैसा रहना चाहिए वैसा रहेगा, संभव है कि हमें अपनी भूमिका में थोड़ा बदलाव करना पड़े।

सिर्फ चिंता करने से क्या होगा जी!

आज के लिए इतना ही,

नमस्कार।
#WritingWillSurvive