इतना सा मेरापन!

आज मैं फिर से भारत के नोबल पुरस्कार विजेता कवि  गुरुदेव रवींद्र नाथ ठाकुर की एक और कविता का अनुवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह उनकी अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित जिस कविता का भावानुवाद है, उसे अनुवाद के बाद प्रस्तुत किया गया है। मैं अनुवाद के लिए अंग्रेजी में मूल कविताएं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध काव्य संकलन- ‘PoemHunter.com’ से लेता हूँ। लीजिए पहले प्रस्तुत है मेरे द्वारा किया गया उनकी कविता ‘Little Of Me’  का भावानुवाद-

 

गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर की कविता 

इतना सा मेरापन!

मुझमें इतना सा मेरापन रह जाने दो,
कि जिसके बाद मैं, अपने समूचे अस्तित्व को तुम्हारा नाम दे सकूं।  

मेरी इच्छा को इतना भर रह जाने दो,
जिससे कि मैं हर तरफ तुमको ही महसूस करूं,  
और मैं हर मामले में तुम्हारे पास ही पहुंचू,
और हर क्षण तुमको ही अपना प्रेम समर्पित करूं।  

मुझमें, मेरा ‘मैं’ इतना कम रह जाने दो,
कि मैं कभी तुमको न छुपाऊं,  
मुझसे बंधी अपनी डोर को इतना छोटा कर दो,
कि मैं तुम्हारी इच्छा से बंधा रहूँ,
और मेरा जीवन, तुम्हारे उद्देश्यों की पूर्ति का माध्यम बने-

 और यह तुम्हारे प्रेम की ही डोर हो।

रवींद्रनाथ ठाकुर

 

 

और अब वह अंग्रेजी कविता, जिसके आधार मैं भावानुवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ- 

 

Little Of Me

Let only that little be left of me 
whereby I may name thee my all. 

Let only that little be left of my will 
whereby I may feel thee on every side, 
and come to thee in everything, 
and offer to thee my love every moment. 

Let only that little be left of me 
whereby I may never hide thee. 
Let only that little of my fetters be left 
whereby I am bound with thy will, 
and thy purpose is carried out in my life—

and that is the fetter of thy love. 

  Rabindranath Tagore

 

नमस्कार।

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