सो गई हैं सारी मंज़िलें, सो गया है रस्ता!

आज मुझे अपने प्रिय गायक मुकेश जी के गाये, प्रेम के और नायिका सौंदर्य वर्णन के कई सुंदर गीत एक साथ याद आ रहे हैं। यह निर्णय नहीं कर पा रहा कि कौन सा गीत शेयर करूं!

तो फिलहाल ऐसा करता हूँ, उनके सुपुत्र नितिन मुकेश जी का गाया एक बहुत सुंदर गीत शेयर कर लेता हूँ। नितिन जी से मिलने और उनके साथ वाराणसी के मंदिरों में घूमने का अवसर मुझे बहुत पहले मिला था, जब मैंने उनका कार्यक्रम अपने संस्थान में कराया था।

ज़नाब जावेद अख्तर जी का लिखा यह गीत जो आज शेयर कर रहा हूँ, 1988 में रिलीज़ हुई फिल्म- तेज़ाब के लिए नितिन मुकेश जी ने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जी के संगीत निर्देशन में गाया था।

बहुत ही खूबसूरत गीत है, आइए आज इस गीत को याद कर लेते हैं-

 

सो गया ये जहाँ, सो गया आस्मां

सो गयी हैं सारी मंज़िले
ओ सारी मंज़िलें सो गया है रस्ता

रात आई तो वो जिनके घर थे, वो घर को गये सो गये
रात आई तो हम जैसे आवारा
फिर निकले राहों मे और खो गये।
इस गली उस गली, इस नगर उस नगर
जाएँ भी तो कहाँ जाना चाहे अगर,
ओ सो गयी हैं सारी मंज़िले
ओ सारी मंज़िलें, सो गया है रस्ता।

कुछ मेरी सुनो, कुछ अपनी कहो
हो पास तो ऐसे चुप ना रहो
हम पास भी है, और दूर भी हैं
आज़ाद भी है, मजबूर भी हैं
क्यूँ प्यार का मौसम बीत गया
क्यूँ हमसे जमाना जीत गया
हर घड़ी मेरा दिल गम के घेरे मे हैं
ज़िंदगी दूर तक अब अंधेरे मे हैं
अंधेरे मे हैं, अंधेरे मे है,
 सो गयी हैं सारी मंज़िलें
ओ सारी मंज़िलें, सो गया है रस्ता।
सो गया ये जहाँ, सो गया आस्मां।

 

आज के लिए इतना ही,

नमस्कार।


 

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