केवल तुम – रवींद्रनाथ ठाकुर

आज, मैं फिर से भारत के नोबल पुरस्कार विजेता कवि गुरुदेव रवींद्र नाथ ठाकुर की एक और कविता का अनुवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह उनकी अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित जिस कविता का भावानुवाद है, उसे अनुवाद के बाद प्रस्तुत किया गया है। मैं अनुवाद के लिए अंग्रेजी में मूल कविताएं सामान्यतः ऑनलाइन उपलब्ध काव्य संकलन- ‘PoemHunter.com’ से लेता हूँ। लीजिए पहले प्रस्तुत है मेरे द्वारा किया गया उनकी कविता ‘Only Thee’ का भावानुवाद-

 

गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर की कविता

 

 

केवल तुम

 

यह कि मैं केवल तुम्हे चाहता हूँ- मेरे हृदय को निरंतर यह दोहराने दो।
ऐसी सभी इच्छाएं, जो दिन-रात मेरा ध्यान भटकाती हैं,
मिथ्या और सिरे से शून्य हैं।

 

जब रात अपने विषाद के घेरे में घिरी रहती है, प्रकाश के लिए याचना,
मेरी बेसुधी की गहराई में भी यह आर्त्त पुकार गूंजती है
—`मैं तुमको चाहता हूँ, केवल तुम्हे’।

 

और जब तूफान अभी भी शांत परिवेश में अपने अंत की प्रतीक्षा कर रहा है
जब वह अपनी पूरी शक्ति के साथ शांति पर चोट करता है,
ऐसे में भी मेरा विद्रोह, आपके प्रेम पर चोट करता है
और तब भी यह पुकार गूंजती है
—`मैं तुम्हे चाहता हूँ, सिर्फ तुमको’।

 

-रवींद्रनाथ ठाकुर

 

और अब वह अंग्रेजी कविता, जिसके आधार मैं भावानुवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ-

 

Only Thee

 

That I want thee, only thee—let my heart repeat without end.
All desires that distract me, day and night,
are false and empty to the core.
As the night keeps hidden in its gloom the petition for light,
even thus in the depth of my unconsciousness rings the cry
—`I want thee, only thee’.
As the storm still seeks its end in peace
when it strikes against peace with all its might,
even thus my rebellion strikes against thy love
and still its cry is
—`I want thee, only thee’.

Rabindranath Tagore

 

आज के लिए इतना ही,
नमस्कार।

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