आज ये आँचल मुँह क्यों छुपाये!

एक बार फिर से मैं आज अपने सर्वाधिक प्रिय गायक मुकेश जी का गाया एक गीत शेयर कर रहा हूँ| मुकेश जी दर्द भरे गीतों के सरताज माने जाते हैं लेकिन रोमांटिक गीत भी उन्होंने एक से एक अच्छे गाये हैं|

 

 

आज का यह गीत 1963 में रिलीज़ हुई फिल्म – ‘हॉलिडे इन बॉम्बे’ के लिए अंजान जी ने लिखा था और एन दत्ता के संगीत निर्देशन में मुकेश जी ने अपने लाजवाब अंदाज में इसे गाया था|

प्रस्तुत है उस अमर गायक की याद में यह गीत-

 

आज ये आँचल मुँह क्यों छुपाये,
आँख का काजल क्यूँ शरमाये,
आखिर क्या है बात हंसी क्यूँ
होठों तक आ कर रुक जाये|
आज ये आँचल मुँह क्यों छुपाये||

 

बदली नजर, बदली अदा, आज है हर अंदाज़ नया|
दिल की लगी छुप न सकी,
राज़ ये आखिर खुल ही गया|
रंग बदल कर किधर चली हो,
बदन समेटे, नजर चुराये|
आज ये आँचल मुँह क्यों छुपाये||

 

महकी हवा, बहकी घटा,
ये आलम, ये मदहोशी|
चुप न रहो, कुछ तो कहो,
तोड़ भी दो ये ख़ामोशी|
ये मौसम, ये घडी मिलन की,
रोज कहा जीवन में आये|
आज ये आँचल मुँह क्यों छुपाये|

 

दिल को मेरे मिल ही गया,
साथी प्यार की राहों का|
साथ कभी छूटे ना, इन लहराती बाँहों का|
अब न जुदा हों दिल से तेरी,
बलखाती जुल्फों के साये|
आज ये आँचल मुँह क्यों छुपाये|

 

आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|

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