आज एक बार फिर से मुझे अपने प्रिय गायक मुकेश जी का गाया एक गीत याद आ रहा है| संभव है यह गीत मैंने पहले भी शेयर किया हो| 1956 में रिलीज़ हुई फिल्म- देवर के लिए यह गीत आनंद बख्शी जी ने लिखा था और रोशन जी के संगीत निर्देशन में मुकेश जी ने इसे अपने अनूठे अंदाज़ में गाया था|
गीत वैसे तो लेखक की रचना होती है और संगीतकार की भी बहुत बड़ी भूमिका होती है उसे सामने लाने में, लेकिन कुछ गीतों के मामले में लगता है की गायक ने उसको गाकर अमर कर दिया|
ख़ैयाम जी ने एक बार मुकेश जी का ज़िक्र करते हुए कहा था- ‘तुम गा दो, मेरा गीत अमर हो जाए’, और यह भी- ‘तू पुकारे तो चमक उठती हैं आँखें सबकी, तेरी सूरत भी है शामिल तेरी आवाज़ मे यार’|
आज ऐसे ही मन हुआ कि शेयर करूं यह अमर गीत-
बहारों ने मेरा चमन लूटकर
खिज़ां को ये इल्ज़ाम क्यों दे दिया,
किसी ने चलो दुश्मनी की मगर
इसे दोस्ती नाम क्यों दे दिया|
बहारों ने मेरा …
मैं समझा नहीं ऐ मेरे हमनशीं
सज़ा ये मिली है मुझे किसलिये,
कि साक़ी ने लब से मेरे छीन कर
किसी और को जाम क्यों दे दिया|
बहारों ने मेरा …
मुझे क्या पता था कभी इश्क़ में
रक़ीबों को कासिद बनाते नहीं,
खता हो गई मुझसे कासिद मेरे
तेरे हाथ पैगाम क्यों दे दिया|
बहारों ने मेरा …
खुदाया यहाँ तेरे इन्साफ़ के
बहुत मैंने चर्चे सुने हैं मगर,
सज़ा की जगह एक खतावार को
भला तूने ईनाम क्यों दे दिया|
बहारों ने मेरा चमन लूटकर
खिज़ां को ये इल्ज़ाम क्यों दे दिया …
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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