आज मैं 1970 में रिलीज़ हुई फिल्म- सफर का एक गीत शेयर कर रहा हूँ| इस फिल्म में राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर प्रमुख भूमिकाओं में थे और बहुत ही प्रभावशाली कहानी और अभिनय इस फिल्म की विशेषता थी|
जहां तक मुझे याद है यह फिल्म प्रेम त्रिकोण पर आधारित है, नायिका शर्मिला टैगोर अपने प्रेमी राजेश खन्ना को छोड़कर मजबूरी में फिरोज खान से शादी कर लेती है, परंतु जब उसको नायिका के राजेश खन्ना से सच्चे प्रेम की जानकारी मिलती है, तब वह आत्महत्या कर लेता है| बाद में राजेश खन्ना नायिका से मिलता भी है तो एक कैंसर मरीज के रूप में! नायिका एक चिकित्सक के रूप में, जी भरकर उसको बचाने के लिए मेहनत करती है, इस बीच वे बहुत निकट आ जाते हैं लेकिन अंततः नायक की मृत्यु हो जाती है| इस परिवेश में यह गीत अत्यंत प्रभाव छोड़ता है|
यह गीत लिखा हई इंदीवर जी ने और कल्याणजी-आनंदजी के संगीत निर्देशन में इसे मन्ना डे जी ने बड़े प्रभावी ढंग से गाया है और ऐसा लगता है कि यह गीत उनके लिए ही बना था|
लीजिए प्रस्तुत है यह अमर गीत-
नदिया चले, चले रे धारा,
चंदा चले, चले रे तारा,
तुझको चलना होगा|
तुझको चलना होगा|
ओहोहो …
जीवन कहीं भी ठहरता नहीं है,
आँधी से तूफां से डरता नहीं है,
तू ना चलेगा तो चल देंगी राहें,
हई रे हई रे
तू ना चलेगा तो चल देंगी राहें,
मंज़िल को तरसेंगी तेरी निगाहें,
तुझको चलना होगा|
तुझको चलना होगा|
पार हुआ वो, रहा वो सफ़र में,
जो भी रुका फिर गया वो भंवर में,
नाव तो क्या बह जाये किनारा
ओ … नाव तो क्या बह जाये किनारा,
बड़ी ही तेज़ समय की है धारा|
तुझको चलना होगा|
तुझको चलना होगा|
आज के लिए इतना ही,
नमस्कार|
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