
मुमकिन हो तो इक ताज़ा ग़ज़ल और भी कह लूँ,
फिर ओढ़ न लें ख़्वाब की चादर तिरी आँखें|
मोहसिन नक़वी
A sky full of cotton beads like clouds
मुमकिन हो तो इक ताज़ा ग़ज़ल और भी कह लूँ,
फिर ओढ़ न लें ख़्वाब की चादर तिरी आँखें|
मोहसिन नक़वी
Leave a Reply