आज एक अलग तरह का गीत शेयर कर रहा हूँ, जिसे ज़नाब गुलाम अली जी ने अनोखे अंदाज़ में गाया है। श्री शिव कुमार बटालवी जी ने इस गीत को लिखा है।
अक्सर कवि-शायर लोग शराब की तारीफ में बहुत सी कविताएं और गीत लिखते हैं। आज का यह गीत शराब के वीभत्स रूप को प्रदर्शित करता है। यह भी सच्चाई है कि अमीर लोग ज्यादातर गुणवत्ता वाली शराब पीते हैं, ज्यादातर लिमिट में पीते है और उसका आनंद लेते हैं।
ज्यादातर गरीब ही सस्ती शराब की लत के शिकार होते हैं और उनके परिवारों को इसका गंभीर परिणाम भुगतना पड़ता है। लीजिए प्रस्तुत हैं इस पंजाबी गीत के बोल-
दस नी शराब दी ए बोतल-ए-कमीनी!
मैं तैनू पीना के तू मैंनू पीनी?
कुछ ते गमां ने मेरे दिल नू उजाड़ेया,
कुछ तेरे नशे मेरी जिंदड़ी नू सारेया,
कख वी न रेह्या पल्ले, धाधिये शौकीनी!
मैं तैनू पीना के तू मैंनू पीनी?
दस नी शराब दी ए बोतल-ए-कमीनी!
मिलेया ना प्यार ते मैं तैनू गले ला लेया!
भुलेया ना पहला गम, दूजा पल्ले पा लेया।
दोवां गम विच मेरा डूबना यकीनी।
दस नी शराब दी ए बोतल-ए-कमीनी!
मैं तैनू पीना के तू मैंनू पीनी?
लुक्के होये दुख मेरे कोई ना पिछानदा,
जिदे लायी मैं रुलेया, शराबी ओह वी जानदा,
मेरे लायी ते आज सारी दुनिया नबीनी।
दस नी शराब दी ए बोतल-ए-कमीनी!
मैं तैनू पीना के तू मैंनू पीनी?
आज के लिए इतना ही।
नमस्कार।
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